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यह वीरता की कहानी है 1999 की है जब जम्मू और कश्मीर के कारगिल जिले में और नियंत्रण रेखा ( LOC ) पर अन्य जगहों पर कारगिल युद्ध लड़ा गया था । जिसमे भारत के वीर सैनिको ने ऑपरेशन विजय के तहत पाकिस्तानी घुसपैठियों को खदेड़ दिया था । इस युद्ध मे लगभग 500 से ज्यादा सैनिको ने अपना जीवन देश के लिए नौछावर कर दिया था।
स्थान | जम्मू-कश्मीर के कारगिल जिले में |
समय | भारत और पाकिस्तान के बीच 1999 में लड़ा गया। |
युद्ध का कारण | पाकिस्तान के सैनिक और कश्मीरी उग्रवादी भारतीय क्षेत्र में घुसपैठ कर कारगिल जिले में ऊंची चोटियों पर कब्जा कर लिए थे। |
युद्ध की शुरुआत | भारतीय सेना को मई 1999 में इन घुसपैठों के बारे में पता चला |
मुख्य लड़ाई के क्षेत्र | द्रास, कारगिल, बटालिक और टाइगर हिल |
कारगिल युद्ध की पूरी कहानी ?
1947-1948 मे भारत-पाकिस्तान के बीच कश्मीर को लेकर प्रथम युद्ध हुआ था। इस युद्ध के तहत नियंत्रण रेखा द्वारा लद्दाख जिले को दो भागों में विभाजित करने के बाद यह युद्ध समाप्त हुआ।
1. 1971 का युद्ध और शांति
1971 में भारत-पाकिस्तान के मध्य बांग्लादेश को लेकर तीसरा युद्ध हुआ । जिससे दोनों देशों में और तनाव बढ़ गया। इस के बाद दोनों देशों के मध्य 1972 मे शिमला समझौते पर हस्ताक्षर किए गए , जिसमें नियंत्रण रेखा के संबंध में सशस्त्र संघर्ष में शामिल न होने का वादा किया गया।
2. सियाचिन ग्लेशियर संघर्ष
1971 में भारत-पाकिस्तान के मध्य बांग्लादेश को लेकर तीसरा युद्ध हुआ । जिससे दोनों देशों में और तनाव बढ़ गया। इस के बाद दोनों देशों के मध्य 1972 मे शिमला समझौते पर हस्ताक्षर किए गए , जिसमें नियंत्रण रेखा के संबंध में सशस्त्र संघर्ष में शामिल न होने का वादा किया गया।
3. परमाणु परीक्षण और अलगाववादी गतिविधिया
1971 में भारत-पाकिस्तान के मध्य बांग्लादेश को लेकर तीसरा युद्ध हुआ । जिससे दोनों देशों में और तनाव बढ़ गया। इस के बाद दोनों देशों के मध्य 1972 मे शिमला समझौते पर हस्ताक्षर किए गए , जिसमें नियंत्रण रेखा के संबंध में सशस्त्र संघर्ष में शामिल न होने का वादा किया गया।
4. लाहौर घोषणा पत्र
लाहौर घोषणा (Lahore Declaration) 21 फरवरी 1999 को पाकिस्तान के लाहौर में भारत और पाकिस्तान के प्रधानमंत्रियों द्वारा हस्ताक्षरित एक समझौता था।
भारतीय प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ़ ने इस घोषणा पर हस्ताक्षर किए थे। इस समझौते का उद्देश्य दोनों देशों के बीच तनाव को कम करना और शांति को बढ़ावा देना था।
5. ऑपरेशन बद्र (अल-बद्र)
1998-1999 की सर्दियों में, पाकिस्तानी सेना के कुछ हिस्से गुप्त रूप से अपने सैनिकों और अर्धसैनिक बलों को प्रशिक्षण दे रहे थे और उन्हें मुजाहिदीन (आतंकवादियों) की आड़ में भारतीय क्षेत्र में भेज रहे थे। इस घुसपैठ को “ऑपरेशन बद्र” कहा गया था। इस ऑपरेशन का उद्देश्य जम्मू और कश्मीर के कारगिल जिले में नियंत्रण रेखा (Line of Control, LOC) को पार करके भारतीय क्षेत्र पर कब्जा जमाना था।
ऑपरेशन बद्र के मुख्य उद्देश्य
कश्मीर और लद्दाख के बीच संपर्क को तोड़ना
भारतीय सेना को सियाचिन ग्लेशियर से हटाना
कश्मीर मुद्दे का अंतर्राष्ट्रीयकरण करना
इस प्रकार, ऑपरेशन बद्र का मकसद था भारतीय क्षेत्र में घुसपैठ करके रणनीतिक लाभ हासिल करना और कश्मीर मुद्दे पर भारत को दबाव में लाना।
6. शाहिद अजीज का खुलासा
पाकिस्तानी लेफ्टिनेंट जनरल शाहिद अज़ीज़, जो उस समय ISI (इंटर-सर्विसेज इंटेलिजेंस) के विश्लेषण विंग के प्रमुख थे । इन्होंने कारगिल युद्ध के बारे में एक महत्वपूर्ण खुलासा किया था कि कारगिल युद्ध में कोई मुजाहिदीन (आतंकवादी) नहीं थे, बल्कि केवल पाकिस्तानी सेना के सैनिक थे जिन्होंने इसमें भाग लिया था।
उन्होंने जनवरी 2013 में ‘The Nation daily’ में अपने लेख में लिखा
कारगिल युद्ध में भाग लेने वाले केवल पाकिस्तानी सैनिक थे। मुजाहिदीन के होने का दावा गलत था और इसका कोई आधार नहीं था।
शाहिद अजीज ने बताया कि कारगिल युद्ध की योजना पाकिस्तानी सेना के उच्च अधिकारियों द्वारा बनाई गई थी और इसमें पाकिस्तानी सैनिकों ने ही मुजाहिदीन की आड़ में नियंत्रण रेखा पार की थी।
मुजाहिदीन की उपस्थिति दिखाने के लिए केवल नकली वायरलेस संदेश भेजे गए थे, जो किसी को भी मूर्ख नहीं बना सकते थे।
पाकिस्तानी सैनिकों को हथियार और गोला-बारूद के साथ बंजर पहाड़ियों पर कब्जा करने के लिए मजबूर किया गया था।
उन्होंने यह भी दावा किया कि तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को इस ऑपरेशन की पूरी जानकारी नहीं थी। पाकिस्तानी सेना के कुछ उच्च अधिकारियों ने उन्हें सही जानकारी नहीं दी थी।
ऑपरेशन बद्र का उद्देश्य भारतीय सेना की आपूर्ति लाइनों को बाधित करना और कश्मीर मुद्दे को अंतर्राष्ट्रीय मंच पर लाना था।
7. ऑपरेशन मेघदूत का प्रतिशोध
“ऑपरेशन मेघदूत” भारतीय सशस्त्र बलों द्वारा 13 अप्रैल 1984 में सियाचिन ग्लेशियर क्षेत्र में चलाया गया एक सैन्य अभियान था, जिसका उद्देश्य इस क्षेत्र पर नियंत्रण स्थापित करना था। यह ऑपरेशन सफल रहा और भारत ने सियाचिन ग्लेशियर पर नियंत्रण स्थापित कर लिया।
यह दुनिया का सबसे ऊंचा युद्धक्षेत्र माना जाता है, जहां दोनों देशों की सेनाओं ने अत्यधिक प्रतिकूल परिस्थितियों में संघर्ष किया।
इसके प्रतिशोध के रूप में पाकिस्तान ने 1999 में “ऑपरेशन बद्र” के तहत कारगिल सेक्टर में घुसपैठ की योजना बनाई थी।
8. राजनीतिक घटनाएँ
भारत के तत्कालीन सेना प्रमुख वेद प्रकाश मलिक के अनुसार, कारगिल युद्ध की योजना बहुत पहले ही तैयार की गई थी।
1980 और 1990 के दशक में, सेना ने कई बार पाकिस्तानी नेताओं जिया उल हक और बेनजीर भुट्टो को कारगिल क्षेत्र में घुसपैठ के बारे में सुचित किया गया लेकिन दोनों देशों के पूर्ण युद्ध में उलझने के भय से इन योजनाओं को टाल दिया गया था।
नवाज शरीफ का दावा
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने युद्ध के बाद दावा किया कि उन्हें कारगिल हमले की योजना के बारे में कोई जानकारी नहीं थी। उन्होंने बताया कि पहली बार इस स्थिति के बारे में उन्हें तब पता चला जब भारत के प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने उन्हें फोन कॉल किया। शरीफ ने इस योजना के लिए जनरल परवेज मुशर्रफ और उनके 2- 3 सहयोगियों को जिम्मेदार ठहराया। कुछ पाकिस्तानी लेखकों ने भी यह बताया कि केवल चार जनरलों को इस योजना की जानकारी थी, जिसमें मुशर्रफ शामिल थे।
परवेज़ मुशर्रफ़ की भूमिका
कुछ विश्लेषकों का मानना है कि अक्टूबर 1998 में परवेज मुशर्रफ के सेनाध्यक्ष नियुक्त होने के तुरंत बाद हमले की योजना को फिर से सक्रिय कर दिया गया था। मुशर्रफ ने दावा किया कि उन्होंने 20 फरवरी को अटल बिहारी वाजपेयी की लाहौर यात्रा से 15 दिन पहले नवाज शरीफ को कारगिल ऑपरेशन के बारे में जानकारी दी थी। इस विवाद के चलते, दोनों नेताओं के बीच इस मामले पर मतभेद बने रहे।
कारगिल युद्ध कि शुरुवात
3 मई 1999
बटालिक क्षेत्र के ताशि नामग्याल नाम का चरवाहा अपना याक खोजने गया था। तभी कुछ दूरी पर उसने लगभग 5 से 6 लोगों को स्थानीय लिबास मे देखा।
उसने तुरंत पंजाब बटालियन के हवलदार बलविंदर सिंह को सूचना दी। बलविंदर ने अपने वरिष्ठ अधिकारियों से संपर्क करने की कोशिश की, लेकिन संपर्क नहीं हो पाने पर वे नामग्याल के साथ उस जगह गए जहां दुश्मन की गोली का शिकार हो गए।
5 मई 1999
भारतीय सेना ने घुसपैठ की रिपोर्ट की जांच के लिए कप्तान सौरभ कालिया गश्ती दल (पेट्रोलिंग पार्टी) भेजा गया। इन गश्ती दलों द्वारा पुष्टि की गई कि पाकिस्तानी सैनिकों ने भारतीय क्षेत्र में घुसपैठ की थी। इसी दौरान, 5 भारतीय सैनिकों को पकड़ लिया गया और बाद में उन्हें मार दिया गया।
8 मई 1999
पाक कि 6 नॉर्दर्न लाइट इंफैट्री के केप्टन इफ्तेखार और लांस हवलदार अब्दुल हकिम 12 सैनिको के साथ कारगिल की आजम चौकी पर कब्जा जमाए बैठे थे भारतीय सेना ने घुसपैठियों की पुष्टि की और “ऑपरेशन विजय” शुरू किया।
9 मई 1999
पाकिस्तानी सेना ने भारी गोलाबारी करके कारगिल में भारतीय गोला-बारूद भंडार को नुकसान पहुंचाया। इससे भारतीय सेना की स्थिति और भी कठिन हो गई।
10 मई 1999
द्रास, काकसर और बटालिक सेक्टरों में नियंत्रण रेखा (एलओसी) पर कई घुसपैठ की पुष्टि हुई। भारतीय सैनिको द्वारा पुष्टि कि गई कि 600 से 800 घुसपैठियों द्वारा भारतीय चौकियो पर कब्जा कर लिया गया। इससे स्पष्ट हो गया कि यह केवल एक सीमित घुसपैठ नहीं थी, बल्कि एक व्यापक और संगठित हमला था।
18 मई 1999
पॉइन्ट 4295 और 4460 पर भारतीय सैना ने अपने अधिकार मे ले लिया ।
26 मई 1999
15 कोर कि साहयता से भारतीय वायु सेना (IAF) ने संदिग्ध घुसपैठियों के ठिकानों पर हवाई हमले शुरू किए। यह “ऑपरेशन सफेद सागर” की शुरुआत थी, जिसका उद्देश्य घुसपैठियों को उनके कब्जे वाले स्थानों से निकालना था।
27 मई 1999
पाकिस्तानी सेना ने भारतीय वायुसेना के मिग-21 और मिग-27 विमानों को मार गिराया। मिग-27 के पायलट फ्लाइट लेफ्टिनेंट कम्बमपति नचिकेता को पकड़ लिया गया और बाद में युद्धबंदी के रूप में रिहा किया गया।
स्क्वाड्रन लीडर अजय आहूजा
स्क्वाड्रन लीडर अजय आहूजा मिग-21 विमान में उड़ान भर रहे थे और उनके एक साथी पायलट, फ्लाइट लेफ्टिनेंट नचिकेता, मिग-27 विमान में थे। उनका मिशन कारगिल क्षेत्र में दुश्मन के ठिकानों का पता लगाना और उन्हें नष्ट करना था। इस मिशन के दौरान, फ्लाइट लेफ्टिनेंट नचिकेता का विमान दुश्मन की मिसाइल से टकरा गया और वह विमान से बाहर निकलने (eject) के लिए मजबूर हो गए।
अजय आहूजा ने अपने साथी की मदद के लिए तुरंत अपने विमान को उस क्षेत्र की ओर मोड़ लिया जहाँ फ्लाइट लेफ्टिनेंट नचिकेता ने विमान से बाहर निकलने के बाद पैराशूट के साथ लैंड किया था। उन्होंने नचिकेता की स्थिति का पता लगाने के लिए अपने मिग-21 विमान को नीचे उड़ाया। इस दौरान, अजय आहूजा का विमान भी दुश्मन की मिसाइल से टकरा गया।
अजय आहूजा विमान से सुरक्षित बाहर निकलने में सफल रहे, लेकिन पैराशूट से नीचे उतरते समय उन्हें दुश्मन की गोलीबारी का सामना करना पड़ा। उन्हें पकड़ लिया गया और बाद में पाकिस्तानी सैनिकों द्वारा उन्हें मार दिया गया। उनकी मृत्यु के बाद, उनके शरीर पर गोलियों के निशान पाए गए, जो यह दर्शाते हैं कि उन्हें पकड़ने के बाद गोली मारी गई थी।
अजय आहूजा के इस साहस और वीरता के लिए उन्हें मरणोपरांत वीर चक्र से सम्मानित किया गया।
28 मई 1999
पाकिस्तानी सेना ने एक भारतीय वायुसेना का Mi-17 हेलिकॉप्टर मार गिराया, जिसमें चार चालक दल के सदस्य मारे गए ,उनके नाम
पायलट: फ्लाइट लेफ्टिनेंट सुधीर कुमार
सह-पायलट: फ्लाइट लेफ्टिनेंट हरि मुरारी
हेलीकॉप्टर इंजीनियर: हवलदार विजय कुमार
नवीनतम चालक: नायब सुभेदार मनोहर सिंह
1 जून 1999
पाकिस्तानी सेना ने कश्मीर और लद्दाख में भारत के राष्ट्रीय राजमार्ग 1 पर गोलाबारी शुरू की, जिससे भारतीय सेना के हथियार मेडिकल सप्लाई और रसद आपूर्ति लद्दाख तक न हो सके।
3 जून 1999
मिग-27 के पायलट फ्लाइट लेफ्टिनेंट कम्बमपति नचिकेता को पाक द्वारा रिहा किया ।
6 जून 1999
भारतीय सेना ने कारगिल में बड़ा आक्रमण शुरू किया। यह “ऑपरेशन विजय” की शुरुआत थी, जिसका उद्देश्य कारगिल क्षेत्र से सभी घुसपैठियों को खदेड़ना था। भारतीय सैनिकों ने बटालिक सेक्टर में दो प्रमुख ठिकानों पर पुनः कब्जा कर लिया, जिससे उनकी स्थिति मजबूत हुई।
10 जून 1999
पाकिस्तान ने जाट रेजिमेंट के 6 सैनिको को मार दिया था।
11 जून 1999
भारत ने पाकिस्तानी सेना की संलिप्तता के सबूत के रूप में परवेज मुशर्रफ और अजीज खान के बीच बातचीत के इंटरसेप्ट किया । इससे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पाकिस्तान की भूमिका स्पष्ट रूप से उजागर हो गई।
13 जून 1999
तोलोलिंग की लड़ाई
तोलोलिंग पहाड़ी का ऊंचा स्थान द्रास सेक्टर में था, जो दुश्मन के लिए एक महत्वपूर्ण रणनीतिक बिंदु था।पाकिस्तानी घुसपैठियों ने तोलोलिंग पर मजबूत स्थिति बना ली थी और ऊंचाई पर होने के कारण उनके पास भारतीय सेना पर हमला करने का लाभ था। भारतीय सैनिकों ने अपने साहस और दृढ़ संकल्प के साथ कठिनाइयों का सामना किया। उन्होंने रात के अंधेरे में चुपके से दुश्मन के ठिकानों पर हमला करने की रणनीति अपनाई।
तोलोलिंग पर कब्जा करने के लिए भारतीय सेना ने कई दिनों तक लगातार प्रयास किया। इसमें 18 ग्रेनेडियर्स और 2 राजपूताना राइफल्स जैसे प्रतिष्ठित रेजिमेंटों ने हिस्सा लिया। उन्होंने बेहद कठिन परिस्थितियों में रातों-रात ऑपरेशन्स किए। इस ऑपरेशन्स मे भाग लेने वाले सैनिक जिनमे से प्रमुख है :
नायक दिगेंद्र कुमार (कोबरा)
इस मिशन के दौरान दिगेंद्र कुमार ने अद्वितीय बहादुरी का परिचय दिया। इन्होंने 15000 फीट कि ऊंचाई पर स्थित तोलोलिंग पहाड़ी पर जीत का तीरंगा फहराया । दिगेंद्र कुमार ने अपने 10 साथियों के साथ मिल कर पाकिस्तान के 48 सैनिको को मार गिराया था।
मेजर विवेक गुप्ता
मेजर विवेक गुप्ता ने कारगिल युद्ध के दौरान अपनी बहादुरी और नेतृत्व से भारतीय सेना को महत्वपूर्ण जीत दिलाने में अहम भूमिका निभाई। खासकर तोलोलिंग की लड़ाई में उनका योगदान अत्यंत महत्वपूर्ण था। इस संघर्ष में मेजर विवेक गुप्ता गंभीर रूप से घायल हो गए, लेकिन उन्होंने अपनी स्थिति नहीं छोड़ी और अंत तक दुश्मन से लड़े।
15 जून 1999
अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन ने नवाज शरीफ को एक टेलीफोन कॉल किया l क्लिंटन ने पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को सभी पाकिस्तानी सैनिकों को कारगिल से तुरंत वापस बुलाने के लिए मजबूर किया। क्लिंटन ने स्पष्ट किया कि यदि पाकिस्तान ने अपने सैनिकों को वापस नहीं बुलाया, तो अंतर्राष्ट्रीय समुदाय पाकिस्तान के खिलाफ सख्त कार्रवाई कर सकता है।
20 जून 1999
5140 चोटी को पाक सैनिकों से मुक्त कराने के लिए कैप्टन विक्रम बत्रा और उनके साथियो को भेजा गया ।5140 द्रास सेक्टर में स्थित थी और इसकी ऊँचाई इसे एक महत्वपूर्ण बिंदु बनाती थी। इस चोटी पर कब्जा करने से भारतीय सेना को नियंत्रण रेखा (LOC) के साथ-साथ पड़ोसी क्षेत्रों पर भी बेहतर निगरानी और नियंत्रण प्राप्त हो सकता था।
कैप्टन विक्रम बत्रा (शेरशाह)
20 जून को सुबह तीन बजकर 30 मिनट पर विक्रम बत्रा ने अपने साथियों के साथ इस चोटी को अपने अधिकर में ले लिया।
चोटी 5140 पर विजय प्राप्त करने के बाद, विक्रम बत्रा ने रेडियो के माध्यम से अपना प्रसिद्ध विजय उद्घोष ‘यह दिल मांगे मोर’ (This heart desires more) किया। यह उद्घोष भारतीय सेना और पूरे देश के लिए प्रेरणा का स्रोत बन गया। उनके कोड नाम “शेरशाह” के साथ-साथ उन्हें ‘कारगिल का शेर’ की उपाधि भी दी गई। अगले दिन चोटी 5140 में भारतीय झंडे के साथ विक्रम बत्रा और उनकी टीम का फोटो मीडिया में आ गयी।
29 जून 1999
29 जून 1999 का दिन भारतीय सेना की कारगिल युद्ध में प्रगति और विजय की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम था। पाकिस्तानी सेना की पीछे हटने की शुरुआत और भारतीय सेना की टाइगर हिल की ओर बढ़त ने युद्ध के परिणाम को स्पष्ट रूप से भारतीय पक्ष में मोड़ दिया।
टाइगर हिल पर कब्जा करने के लिए भारतीय सैनिकों ने बेहद कठिन और भीषण लड़ाई लड़ी।भारतीय सैनिकों ने पहाड़ी इलाकों में रातों-रात चढ़ाई की और दुश्मन के ठिकानों पर हमला किया। दुश्मन के भारी गोलीबारी और विषम परिस्थितियों के बावजूद, भारतीय सैनिकों ने अपने अद्वितीय साहस और धैर्य का प्रदर्शन किया।
अनंत: भारतीय सैना ने टाइगर हिल के प्वाइंट 5060 और 5100 को अपने अधिकार मे ले लिया।
4 जुलाई 1999
तीन भारतीय रेजिमेंट्स (सिख, ग्रेनेडियर्स और नागा) ने टाइगर हिल की लड़ाई में पाकिस्तानी सैनिकों को हरा कर क्षेत्र पर पुनः कब्जा कर लिया। 12 घंटे चली लड़ाई के बाद टाइगर हिल पर वापस अधिकार कर लिया । टाइगर हिल को जीतने के लिए 18 ग्रेनेडियर्स की अहम भूमिका थी ।
5 जुलाई 1999
नवाज शरीफ और बिल क्लिंटन के बीच वाशिंगटन में एक महत्वपूर्ण बैठक हुई। इस बैठक में क्लिंटन ने शरीफ को समझाया कि कारगिल संघर्ष को जारी रखना पाकिस्तान के लिए विनाशकारी साबित हो सकता है और उन्हें तुरंत अपनी सेना को वापस बुलाने का सुझाव दिया। लेकिन तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा कि जब तक हम एक-एक सीमा चौकी से पाकिस्तानियो को भगा नही देते तब तक हम रुकने का नाम नही लेंगे ।
7 जुलाई 1999
भारतीय सैनिकों ने बटालिक में जुबार हाइट्स पर पुनः अधिकार कर लिया।
प्वाइंट 4875 पर जीत :
इसके बाद सेना ने चोटी 4875 को भी अधिकार में लेने का अभियान शुरू कर दिया और इसके लिए भी कैप्टन विक्रम और उनकी टुकड़ी को जिम्मेदारी दी गयी।आक्रमण का नेतृत्व करते हुए आमने-सामने की भीषण गुत्थमगुत्था लड़ाई में अत्यन्त निकट से पांच शत्रु सैनिकों को मार गिराया। उन्होंने जान की परवाह न करते हुए अपने साथियों के साथ, जिनमे लेफ्टिनेंट अनुज नैयर भी शामिल थे, कई पाकिस्तानी सैनिकों को मौत के घाट उतारा। किंतु ज़ख्मों के कारण यह अफ़सर वीरगति को प्राप्त हुए।
विक्रम बन्ना के आखरी शब्द थे ‘जय माता दी’ ।विक्रम बन्ना कि शहादत के बाद उनके सम्मान मे प्वाइंट 4875 को बन्ना टॉप का नाम दिया गया।
11 जुलाई 1999
भारतीय सैना ने बटालिक सेक्टर की लगभग सभी पहाड़ियो कि चोटियो को अपने अधिकार मे ले लिया।पाकिस्तानी सेनाओं ने कारगिल क्षेत्र से पीछे हटना शुरू कर दिया। यह निर्णय पाकिस्तान की ओर से युद्ध के तनाव ( भारतीय सैना के डर से )और अंतरराष्ट्रीय दबाव के कारण लिया गया।
14 जुलाई 1999
भारतीय प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने कारगिल युद्ध के ऑपरेशन विजय की सफलता की आधिकारिक घोषणा की।
26 जुलाई 1999
आखिरकार वह दिन आ ही गया जब 26 जुलाई 1999 कारगिल युद्ध आधिकारिक रूप से समाप्त हो गया। इस दिन को “कारगिल विजय दिवस” के रूप में मनाया जाता है, जो भारतीय सेना की महत्वपूर्ण सैन्य सफलताओं और विजय का प्रतीक है।
कारगिल युद्ध का परिणाम
26 जुलाई 1999 को, भारत ने कारगिल युद्ध में विजय हासिल की। पाकिस्तानी सेना को भारी नुकसान हुआ और उसे पीछे हटने पर मजबूर होना पड़ा।
कारगिल युद्ध मे भारत ने काफी संयम दिखाया जिससे दुनिया भर मे उसकी तारीक हुई ।
कारगिल युद्ध से नुकसान
🇮🇳 भारत को
मृतक: भारतीय सेना के लगभग 527 जवान शहीद हुए।
घायल: 1,363 से अधिक सैनिक घायल हुए।
🇵🇰 पाकिस्तान को
मृतक: पाकिस्तान के लगभग 700-800 सैनिक मारे गए (आधिकारिक आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं)।
घायल: पाकिस्तान के कई सैनिक घायल हुए, लेकिन सटीक आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं।
कारगिल युद्ध मे हमारे जांबाज सैनिकों ने दुश्मन के खिलाफ जो साहस दिखाया, वह न केवल देश की रक्षा के लिए था, बल्कि यह हमारे राष्ट्र के प्रति उनकी अटूट निष्ठा का प्रतीक था।
हमारी सेना ने कठिन परिस्थितियों में भी अपनी ताकत और एकता का परिचय दिया। इस युद्ध ने हमें यह सिखाया कि जब हम एकजुट होते हैं, तो कोई भी शक्ति हमें हरा नहीं सकती। हमें गर्व है उन शहीदों पर जिन्होंने अपनी जान की परवाह किए बिना हमारी सीमाओं की रक्षा की। उनके बलिदान को कभी नहीं भुलाया जाएगा। हम सभी मिलकर उन वीरों को श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। जय हिंद!”