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भगत सिंह भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महान योद्धा में से एक थे। उनका योगदान स्वतंत्रता संग्राम की महत्वपूर्ण घटनाओं में से एक है।
पूरा नाम | भगत सिंह किशन सिंह संधू |
जन्म | 27 सितंबर 1907, बंगा (पाकिस्तान) |
मृत्यु | 23 मार्च 1931 (उम्र 23 वर्ष), लाहौर सेंट्रल जेल (लाहौर,पाकिस्तान) |
आयु | 23 वर्ष |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
भाई-बहन | 8 बहन-भाई थे (बीबी प्रकाश कौर,कुलबीर सिंह,कुलतार सिंह,जगत सिंह,बीबी शकुंतला,रणबीर सिंह,बीबी अमर कौर और राजिंदर सिंह) |
शिक्षा | डीएवी कॉलेज प्रबंध समिति (1916-1917), नेशनल कॉलेज (लाहौर,पाकिस्तान) |
संगठन | नौजवान भारत सभा |
नारा | इंक़लाब ज़िन्दाबाद |
जीवन परिचय
🔆 जन्म :
28 सितंबर 1907 को पंजाब के लायलपुर जिले के बंगा गांव (जो अब पाकिस्तान में है ) के सिख परिवार में हुआ था। जबकि उनका पैतृक गांव खट्कड़ कलां पंजाब जो भारत मे है। वे किसान परिवार से थे।
वे 8 बहन-भाई थे जिसमें भगत सिंह दूसरे नंबर के थे।(बीबी प्रकाश कौर,कुलबीर सिंह,कुलतार सिंह,जगत सिंह,बीबी शकुंतला,रणबीर सिंह,बीबी अमर कौर और राजिंदर सिंह)
उनके पिता का नाम सरदार किशन सिंह संधू और मां का नाम विद्यावती कौर था।
भगत सिंह की दादी ने उनका नाम भागां वाला (अच्छे भाग्य वाला) रखा था पर बाद में उन्हें भगत सिंह कहा जाने लगा।
जब उनका जन्म हुआ तब औपनिवेशीकरण विधेयक के खिलाफ प्रदर्शन करने के जुल्म में उनके पिता किशन सिंह और चाचा अजित सिंह और स्वर्ण सिंह जेल में थे।
उनके चाचा अजित सिंह ने भारतीय देश भक्त संघ कि स्थापना की जिसका उनके एक मित्र सैयद हैदर रजा ने समर्थन किया । उनका परिवार गदर पार्टी का समर्थक था, इसी कारण भागत सिंह का छोटी उम्र से ही राष्ट्रीय भावनाओं से गहरा आलंब था।
🔆 शिक्षा :
भगत सिंह कि स्कूली शिक्षा डीएवी हाई स्कूल (दयानंद एंग्लो वैदिक हाई स्कूल) और आगे कि शिक्षा नेशनल कॉलेज, लाहौर से प्राप्त कि ।
नेशनल कॉलेज़ लाहौर मे उनकी मुलाकात सुखदेव थापर ,भगवती चरण और अन्य लोगो से हुई।
भगत सिंह अपने कॉलेज के दिनों में कई नाटको में भाग लेते थे जो देशभक्ती से परिपूर्ण होते थे। वे एक अच्छे राइटर भी थे।
करतार सिंह सराभा जिन्हें भगत सिंह अपना आदर्श और गुरु मानते थे। करतार सिंह सराभा को मात्र 19 वर्ष कि आयु मे ही (16 नवम्बर 1915 को ) ब्रिटिश सरकार ने फांसी की सजा दे दी थी।
क्रांतिकारी जीवन
1. जलियाँवाला बाग हत्याकाण्ड :
13 अप्रैल 1919 , जनरल डायर (अँग्रेज ऑफिसर) द्वारा अमृतसर में स्वर्ण मन्दिर के निकट जलियाँवाला बाग हत्याकाण्ड कराया गया जिसमें अनाधिकारिक आँकड़ों के हिसाब से 1000 से अधिक लोग मारे गए और 2000 से अधिक घायल हुए। जिस समय जलियाँवाला बाग हत्याकाण्ड हुआ उस समय भगत सिंह कि आयु 12 वर्ष थी। हत्याकाण्ड कि सूचना मिलते ही भगत सिंह अपने स्कूल से 12 मील पैदल चलकर जलियाँवाला बाग पहचे। इस घटना ने भगत सिंह के जीवन पर गहरा प्रभाव डाला।
इसके बाद भगत सिंह ने अपने कॉलेज कि पढ़ाई छोड़कर भारत कि आजादी के लिए नौजवान भारत सभा की स्थापना कि।
2. चौरी-चौरा हत्याकांड :
4 फरवरी 1922 , उत्तर प्रदेश में गोरखपुर के चौरी चौरा नामक स्थान पर किसानो और कुछ लोगो कि भीड़ ने अंग्रेजी सरकार की एक पुलिस चौकी को आग लगा दी थी जिसमे लगभग 23 पुलिस कर्मचारियो कि मौत हो गई थी। ये घटना इतिहास में चौरी चौरा काण्ड के नाम से जानी जाती है।
इस घटना के बाद गाँधी जी ने असहयोग आंदोलन वापस ले लिया और किसानो का साथ नही दिया तब भगत सिंह बहुत निराश हुए उसके बाद उनका अहिंसा में विश्वास कमजोर हो गया और उन्होंने सशस्त्र क्रांति को ही स्वतंत्रता दिलाने का एकमात्र मार्ग समझा।
इस घटना के बाद क्रांतिकारीयो के 2 दल बन गए थे जिसमे एक दल नरम दल और दूसरा गरम दल के नाम से जाने जाते थे। भगत सिंह ,सुखदेव, राजगुरु ,अशफाकउल्ला खान, राजेंद्र लाहिड़ी , रौशन सिंह ,राम प्रसाद बिस्मिल और चंद्रशेखर आजाद आदि क्रांतिकारी गरम दल के नेता थे।
3.काकोरी काण्ड :
9 अगस्त 1925 , लखनऊ के पास काकोरी रेलवे स्टेशन पर गरम दल के लोगो ने ब्रिटिश सरकार के खजाने को लुट लिया था जिसे उस समय काकोरी काण्ड के नाम से जाना था और अब इसे काकोरी ट्रैन एक्शन के नाम से जाना जाता है।
इस घटना को अंजाम देने वालो मे राम प्रसाद बिस्मिल,अशफाकउल्ला खान , ठाकुर रौशन सिंह , राजेंद्र लाहिड़ी समेत 10 और क्रांतिकारी शामिल थे।
काकोरी षडयंत्र हिन्दुस्तान रिपब्लिक एसोसिएशन (HRA) सबसे बड़ी कार्यवाही थी।
जब ब्रिटिश सरकार ने इस घटना कि तलाशी ली तो उन्होंने कई लोगो को गिरफ्तार किया जिसमें 17 लोगो को जेल, 4 को सजा-ए-काला पानी या आजीवन कारावास और 4 लोग राम प्रसाद बिस्मिल, राजेंद्र लाहिड़ी ,ठाकुर रौशन सिंह और अशफाकउल्ला खान को फांसी की सजा सुनाई गई।
इस घटना के बाद भगत सिंह इतने दु:खी हो गए थे कि उन्होंने अपनी पार्टी नौजवान भारत सभा को चन्द्र शेखर आजाद के साथ उनकी पार्टी हिन्दुस्तान रिपब्लिक एसोसिएशन (HRA) से जोड़ दिया था और उसे एक नया नाम दिया जिसे हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिक एसोसिएशन (HSRA) के नाम से जाना गया।
4. साइमन कमीशन बहिष्कार :
8 नवम्बर 1927, भारत में संविधान सुधार के लिए 7 ब्रिटिश सांसद समूह का गठन किया जिसे साइमन कमीशन के नाम से जाना गया । इसका नाम इस कमीशन के अध्यक्ष सर जॉन साइमन के नाम पर रखा गया।
3 फरवरी 1928 को साइमन कमीशन भारत आया जिसका भारत के लोगो ने जमकर विरोध किया और साइमन कमीशन वापस जाओं के नारे लगाए ।
साइमन कमीशन बहिष्कार के लिए लोगो ने भयानक प्रदर्शन किया । इस कमीशन का लाला लाजपत राय, जवाहरलाल नेहरू और मुस्लिम लीग ने भी विरोध प्रदर्शन किया ।
30 अक्टूबर 1928 को साइमन कमीशन के विरोध मे लाला लाजपत राय ने अंग्रेजो वापस जाओ का नारा दिया और इस कमीशन का विरोध किया। उनके इस विरोध के कारण ब्रिटिश सरकार ने प्रदर्शनकारियो पर लाठी चार्ज कराया । इस लाठी चार्ज का नेतृत्व सांडर्स कर रहा था। उसने अपने एक अधिकारी स्कॉट को लाला लाजपत राय पर लाठी बरसाने का आदेश दिया जिस कारण लाला लाजपत राय गंभीर रूप से घायल हो गए और इलाज के दौरान 18 दिन बाद 17 नवम्बर 1928 को उनका निधन हो गया ।
मृत्यु से पूर्व लाला लाजपत राय ने ने कहा था कि “मेरे ऊपर बरसाई गई हर एक लाठी ,ब्रिटिश साम्राज्य के ताबूत में आखिरी कील साबित होगी।”
लाला लाजपत राय और भगत सिंह के बीच में आपसी मतभेद थे परन्तु उनकी मौत के बाद भगत सिंह के साथ चन्द्रशेखर आजाद , सुखदेव और राजगुरु ने सांडर्स को मारने कि कसम खाई ।
17 दिसंबर 1928 को भगत सिंह और राजगुरु ने सांडर्स को गोलियों से मार कर अपना बदला पूरा किया ।
5. सेंट्रल असेंबली में बम फेंकना :
8 अप्रैल 1929, दिल्ली की सेंट्रल असेंबली मे वायसराय पब्लिक सेफ्टी बिल पेश कर रहे थे। इस बिल मे ब्रिटिश सरकार के पास यह अधिकार आ जाता कि वह किसी भी संदिग्ध व्यक्ति को बिना मुकदमा चलाए हिरासत मे रख सकती थी।
इस बिल को कानून बनाने के लिए विट्ठल भाई पटेल जैसे ही फैसला सुनाने लगे तभी अचानक असेंबली मे जोरदार विस्फोट हुआ, हॉल मे धुआं भर गया और दो व्यक्ति ‘इंकलाब जिंदाबाद’ , ‘ साम्राज्यवाद मुर्दाबाद’ और ‘ दुनिया के मजदूरो एक हो जाओ’ जैसे नारे लगाने लगे । ये दो व्यक्ति और कोई नही बल्कि भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ही थे।
उनका मकसद लोगो को मारना या घायल करना नही था बल्कि बहरो ( ब्रिटिश सरकार) को सुनाना था। उन्होंने हॉल में परचे भी फेंके थे। जिन पर लिखा था कि ”बहरो को सुनाने के लिए बहुत ऊंची आवाज कि जरूरत होती है। ‘’
इसके बाद दोनों को ब्रिटिश अफसरो ने पकड़ लिया ।
6. जेल :
भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त को असेंबली में बम फैकने के आरोप मे दोषी ठहराया गया और दोनों को उम्रकैद कि सजा सुनाई ।
बटुकेश्वर दत्त को अण्डमान निकोबार मे काला पानी कि सजा सुनाई।
14 जून 1929 को भगत सिंह और उनके साथियो ( सुखदेव,राजगुरु और अन्य साथी ) को दिल्ली की सेंट्रल जेल मे बन्दी के रूप में रखा गया ।
कुछ दिन वहाँ रखने के बाद उन्हे 17 जून 1929 को मियांवाली जेल में भेज दिया गया । यहाँ अच्छा भोजन न मिलने के कारण उन्होंने 116 दिनों की भुख हड़ताल की । इसके बाद उन्हे और उनके साथियों को लाहौर जेल में डाल दिया गया ।
यहाँ पर उन्होंने अपने साथियो के साथ भूख हड़ताल को जारी रखा था।
63 दिनों की भुख हड़ताल के बाद उनके एक साथी जतीन्द्रनाथ दास (13 सितंबर 1929) की मृत्यु हो गई । इस घटना के बाद भगत सिंह और उनके साथियों ने 5 अक्टूबर 1929 को अपनी भूख हड़ताल समाप्त कर दी थी ।
भगत सिंह करीब 2 साल तक जेल मे रहे । यहाँ पर उन्होंने अपना अध्ययन जारी रखा । यहाँ पर उन्होंने कई लेख लिखे जिनमें एक लेख ”Why I Am an Atheist” (मैं नास्तिक क्यों हूँ?) अंग्रेजी मे लिखा ।
7.फाँसी:
10 जुलाई 1929 सॉन्डर्स की हत्या के मामले की कार्यवाही शुरू की गई।
भगत सिंह को फांसी दिलाने के लिए ब्रिटिश सरकार की तरफ से राय बहादुर सूर्य नारायण थे जबकि भगत सिंह की वकालत आसफ अली कर रहे थे।
26 अगस्त 1930 , भगत सिंह को सॉन्डर्स की हत्या और बम विस्फोट के आरोप मे अपराधी सिद्ध कर दिया गया।
अदालत द्वारा 68 पेजो पर 7 अक्टूबर 1930 भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु फांसी की सजा सुनाई गई। फांसी की सजा सुनाए जाने के बाद लाहौर मे धारा 144 लगा दि गई ।
फाँसी की सजा को रोकने के लिए कई प्रयास किए । 10 जनवरी, 1931 प्रिवी परिषद में अपील दायर की गई लेकिन इसे रद्द कर दिया गया।
फिर उस समय के तत्कालीन काँग्रेस अध्यक्ष पंडित मदन मोहन मालवीय ने 14 फरवरी, 1931 को वायसराय से मानवता के आधार पर सजा माफी के लिए अपील दायर की परन्तु इससे भी बात न बनी ।
17 फरवरी 1931 से 5 मार्च 1931 को लंदन मे द्वितीय गोलमेज सम्मेलन मे गाँधी और वायसराय लॉर्ड इरविन के बीच समझोता हुआ ।
महात्मा गाँधी ने 18 फरवरी 1931 को वायसराय इरविन से भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव की फाँसी की सज़ा माफ़ करने के हेतु बात कि ।
परन्तु भगत सिंह नहीं चाहते थे कि उनकी सजा माफ हो ।
ब्रिटिश सरकार के जज जी.सी. हिल्टन ने 24 मार्च 1931 को फाँसी की सजा सुनाई । गाँधी जी ने फांसी की सजा के एक दिन पहले भी 23 मार्च 1931 को वायसराय इरविन को भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव की फाँसी रोकने के लिए पत्र भी लिखा ।
परन्तु उनकी फाँसी की सजा सुनाए जाने के कारण भारत के लोग जिस तरह विरोध प्रदर्शन कर रहे थे उससे ब्रिटिश सरकार डर गई थी। इस कारण ब्रिटिश सरकार ने तीनो को 11 घंटे पहले 23 मार्च 1931 को ,7 बजकर 33 मिनट पर (सोमवार,शाम को) भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव फाँसी पर चढाने की सजा को मंजूरी दे दि गई ।
फाँसी पर जाने से पहले भगत सिंह से जब उनकी आखरी इच्छा पूछी गई तो उन्होंने कहा कि वह लेनिन की जीवनी पढ़ रहे थे तो उन्हें उस जीवनी को पूरा करने का समय दिया जाए।
जेल के अधिकारियों ने जब उन्हें यह सूचना दी कि अब उनको फाँसी देने का वक्त आ गया है तो उन्होंने कहा था- “ठहरिए! पहले एक क्रान्तिकारी दूसरे से मिल तो ले ।” तीनो ने एक दूसरे को गले लगाया उनके बाद भगत सिंह ने किताब छत की ओर उछाल कर बोले – “ठीक है अब चलो ।”
फाँसी पर जाते समय तीनों भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव बिना किसी डर के मस्ती से गाते हुए जा रहे थे –
मेरा रँग दे बसन्ती चोला, मेरा रँग दे बसन्ती चोला। माय रँग दे बसन्ती चोला॥
इसके बाद लाहौर सेंट्रल जेल (23 मार्च, 1931) मे भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को 7 बज के 33 मिनट पर फाँसी का फंदा पहनाया गया और तीनों ने फंदे को चुमा और उसके बाद उनके हाथ पैर बांध दिए गए। जब जल्लाद काला मसीह ने उन तीनो से पूछा की पहले कौन फाँसी पर कौन जाएगा तो सुखदेव ने जवाब दिया कि ” पहले मुझे फाँसी पर चढाया जाए ” उसके बाद तीनो भारत के वीर क्रांतिकारियों को एक के बाद एक फाँसी पर लटका दिया गया ।
उनकी फाँसी के बाद जेल मे लोगो ने करीब 15 मिनट तक ”इंक़लाब ज़िन्दाबाद” के नारे लगाए। जिसका अर्थ है ‘क्रांति की जय हो‘।
फाँसी के बाद आम जनता आन्दोलन या विरोध प्रदर्शन न करे इस के डर से ब्रिटिश अधिकारियो ने तीनों के मृत शरीर के टुकड़े किये और फिर उन्हे जलाने के लिए बोरियों में भरकर फिरोजपुर की ओर लेकर जाने लगे तभी गांव के लोगों ने उन्हे जाते हुए देख लिया तो अंग्रेज अधिकारी डर के कारण उनके शवो के टुकड़ो को सतलुज नदी में फेंक के भाग गए। गाँव वालो ने नदी के किनारे पहुँच कर तीनों के शवो के टुकड़ो को एकत्रित किया और विधिवत उनका दाह संस्कार किया ।
सम्मान :
भारत में प्रत्येक वर्ष 23 मार्च को भगत सिंह, शिवराम राजगुरु और सुखदेव थापर की याद में शहीद दिवस मनाया जाता है।
किताबे 🖋️:
प्रकाशन वर्ष | किताब | लेखक/सह-लेखक |
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27 सितम्बर 1931 | मैं नास्तिक क्यों हूँ? | भगत सिंह |
1931 | जेल डायरी और अन्य लेख | भगत सिंह |
2 फरवरी 1931 | युवा राजनीतिक कार्यकर्ताओं के लिए | भगत सिंह |
उनकी शौर्य और स्वतंत्रता संग्राम में दिए गए योगदान के लिए भारतीय जनता उन्हें महान स्वतंत्रता सेनानी के रूप में हमेशा याद करेगी और उन्हें आजाद हिंद फौज के एक महान योद्धा के रूप में स्मरण किया जाता रहेगा।
समाप्ति
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